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दु: स्वपन्न का अंत

दु: स्वपन्न का अंत
Author: साधुराम दर्शक
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Multiple Book Set: No

दर्शक जी की इस कहानी - संग्रह को राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक महासंघ के प्रकाशन के रूप में पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हुए मुझे बड़ी प्रसन्ता हो रही है . वह उन नए कथाकारों में से एक हैं जो अच्छे साहित्य के लिए प्रेमचंद की कसौटी स्वीकार करते हैं : " हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा जिस में उच्च चिंतन हो , स्वाधीनता का भाव हो , सौंन्दर्य का सार हो , सृजन की आत्मा हो , जीवन की सच्चाईओंका प्रकाश हो , जो हम में गति और संघर्ष की बेचैनी पैदा करे , सुलाए नहीं ,

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