Author: |
लीलाधर मंडलोई ( संपादक ) |
ISBN: |
978817002157 |
Edition: |
जनवरी 2010 |
Multiple Book Set: |
No |
समकालीन कहानी ने कुछ पड़ाव हासिल किए . कुछ आंदोलन . समय समय पर गंभीर चिंतन . बहस और मुबाहिसे . एक अंतराल भी है . कोई आंदोलन नहीं . न ही कोई अजेंडा . लेकिन समकालीन कहानी ने अबाध यात्रा जारी रखी . कई महत्वपूर्ण कथाकार परिद्रिश्य में आये . उन्होंने कथ्य भाषा शिल्प को यथा संभव बदलने का उपक्रम किआ
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